एटग्रेड अभ्यास पुस्तिका 2022-23 संपूर्ण हल कक्षा 8 हिंदी पाठ -6 भक्ति के पद
ऐठ ग्रेड अभ्यास पुस्तिका कक्षा 8 हिंदी पाठ -6 भक्ति के पद
प्रिय विद्यार्थियों आज के इस महत्वपूर्ण आर्टिकल में हम देखने वाले हैं एटग्रेड अभ्यास पुस्तिका 2022-23 संपूर्ण हल कक्षा 8 हिंदी पाठ -6 भक्ति के पद। आपको इस वेबसाइट पर एटग्रेड अभ्यास पुस्तिका 2022-23 के कक्षा आठवीं के सभी विषयों के संपूर्ण हल देखने को मिल जाएंगे । इस पोस्ट में हम कक्षा 8 हिंदी पाठ -6 भक्ति के पद के सभी प्रश्नों के हल देखेंगे जो कि आपकी ऐठ ग्रेड अभ्यास पुस्तिका में दिए गए हैं । कक्षा एक से कक्षा आठवीं के सभी विद्यार्थियों का अर्धवार्षिक परीक्षा का टाइम टेबल भी जारी कर दिया गया है यदि आपने अभी तक अपना टाइम टेबल नहीं देखा है तो नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके आप अपने टाइम टेबल को डाउनलोड कर सकते हैं ।
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बहुत सारे विद्यार्थियों के मन में अब यह सवाल आ रहा होगा कि अर्धवार्षिक परीक्षा में किस प्रकार के प्रश्न पूछे जाएंगे ।इस साल आपका अर्धवार्षिक परीक्षा ऐठ ग्रेड अभ्यास पुस्तिका से आने की बहुत अधिक संभावना है इसलिए आपको कक्षा 8 की सभी 8 ग्रेड अभ्यास पुस्तिका तो अच्छी तरीके से याद कर लेना है । कक्षा 8 की सभी एटग्रेड अभ्यास पुस्तिका का संपूर्ण हल आपको हमारी इस वेबसाइट पर देखने को मिल जाएगा ।
पाठ-4 भक्ति के पद
प्रश्न 1. ' अधम का उद्धारक' किसे कहा गया है?
उत्तर—अधम का उद्धारक भगवान श्रीराम को कहा गया है। उन्होंने जटायु, मारीच, वाल्मीकि रूपी डाकू, अहिल्या रूपी पत्थर, यमलार्जुन रूपी वृक्ष का उद्धार किया है।
प्रश्न 2. 'प्रभुजी तुम घन वन हम मोरा' पंक्ति में घन का अर्थ क्या है?
उत्तर- 'प्रभुजी तुम घन वन हम मोरा' पंक्ति में घन का अर्थ बादल है। इस पंक्ति का अर्थ है— हे प्रभु! तुम बादल और वन हो तथा हम मोर हैं अर्थात् जंगल में बादलों को देखकर मोर जिस प्रकार आनंदित होकर नृत्य करता है, उसी तरह मैं भी ईश्वर भक्ति में आनन्द पाता हूँ।
प्रश्न 3. 'गिरधर नागर' किसे कहा गया है?
उत्तर—‘गिरधर नागर' भगवान श्रीकृष्ण को कहा गया है। उन्होंने गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। अतः उन्हें 'गिरधर नागर' कहा जाने लगा ।
प्रश्न 4. रैदास जी की भक्ति किस भाव की है? उदाहरण देकर लिखिए ।
उत्तर-रैदास जी की भक्ति दास्य (सेवक) भाव की है। दास्य भक्ति के अंतर्गत भक्त स्वयं को लघु, तुच्छ और दास कहता है तथा प्रभु को दीन दयालु, भक्त वत्सल कहता है। वे स्वयं को पानी और प्रभु को चंदन मानते हैं। वे प्रभु को गरीब निवाजु, निडर और दयालु कहते हैं। ये सब दास्य भक्ति के भाव हैं।
प्रश्न 5. 'मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै' पद के अनुसार सुख कहाँ प्राप्त होता है?
उत्तर—सूरदास जी कृष्ण में अपनी अनन्य भक्ति को दर्शाते हुए कहते हैं कि मेरा मन दूसरी जगह कहाँ सुख प्राप्त कर सकता है। जिस प्रकार समुद्री जहाज का पक्षी समुद्र में चलते जहाज से उड़कर अन्यत्र सहारा न पाकर फिर उसी पर वापस आ जाता है, उसी प्रकार मेरे मन को भी अन्यत्र सुख की प्राप्ति नहीं हुई ।
प्रश्न 6. तुलसीदास जी ने अपने पद में किस-किस के उद्धार का उल्लेख किया है?
उत्तर—तुलसी ने जटायु रूपी पक्षी, मारीच रूपी कपट मृग(स्वर्ण मृग), वाल्मीकि जैसे डाकू, अहिल्या रूपी पत्थर और यमलार्जुन रूपी वृक्ष के उद्धार का उल्लेख किया गया है। जटायु पक्षी सीता हरण के समय सीता को बचाते समय रावण से संघर्ष में घायल हो गया था। मारीच रावण का सम्बन्धी था जिसने मायावी स्वर्ण मृग बनकर सीता हरण में रावण की सहायता की थी। श्री राम ने उसका उद्धार किया था। वाल्मीकि पहले एक डाकू थे परन्तु राम का उल्टा नाम लेते-लेते ऋषि बन गये। अहिल्या गौतम ऋषि की पत्नी थी जो श्राप के कारण पत्थर की शिला बन गई थीं। यमलार्जुन श्राप के कारण वृक्ष बन गए थे। प्रभु ने इन सभी का उद्धार किया।
प्रश्न 7. भक्त रैदास ने भगवान से अपना सम्बन्ध स्थापित करते हुए किस-किससे अपने को जोड़ा है?
उत्तर-रैदास ने भगवान से अपना सम्बन्ध स्थापित करते हुए प्रभु को चन्दन स्वयं को पानी, प्रभु को बादल स्वयं को मोर, प्रभु को चन्द्रमा स्वयं को चकोर, प्रभु को दीपक स्वयं को उसकी बाती और प्रभु को मोती तथा स्वयं को धागा की उपमा देकर स्वयं को जोड़ा है।
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मूल्यांकन -5
प्रश्न 8. 'अंबुज' किसका पर्यायवाची है?
उत्तर—' अंबुज' कमल का पर्यायवाची शब्द है।
प्रश्न 9. 'खरचै नहिं कोइ चोर न लेवै, दिन-दिन बढ़त सवायो' पद के संदर्भ में इस पंक्ति का अर्थ लिखिए।
उत्तर—मीरा कहती है कि यह राम नाम रूपी धन ऐसा है जो व्यय करने से न तो घटता है, न चोर उसे चुरा सकते हैं वरन् यह तो दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जाता है।
प्रश्न 10. 'मेरौ मन अनत कहाँ सुख पावै' पद की व्याख्या 8-10 वाक्यों में लिखिए ।
उत्तर -सूरदास जी कृष्ण में अपनी अनन्य भक्ति को दर्शाते हुए कहते हैं कि मेरा मन दूसरी जगह कहाँ सुख प्राप्त कर सकता है। जिस प्रकार समुद्री जहाज का पक्षी समुद्र में चलते जहाज से उड़कर अन्यत्र सहारा न पाकर फिर उसी पर वापस आ जाता है, उसी प्रकार मेरे मन को भी अन्यत्र सुख की प्राप्ति नहीं हुई। अतः मेरा मन भटक-भटक कर अब भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आ गया है। कमल के समान नेत्र वाले श्रीकृष्ण के अतिरिक्त अन्य किसी देवता का ध्यान व मनन करना कल्याणकारक नहीं है। ऐसे देवता को छोड़कर दूसरे का जो ध्यान करता है उससे बढ़कर दूसरा कोई मूर्ख नहीं है। वह उसी मूर्ख के समान है जो प्यास लगने पर श्रेष्ठ गंगा के पवित्र जल को छोड़कर अपनी प्यास बुझाने के लिए कुँआ खोदता है। जिस भौरे ने कमल के रस का पान किया है वह करील का कड़वा फल क्यों खायेगा ? ऐसा कौन मूर्ख होगा जो कामधेनु गाय को छोड़कर बकरी को दुहेगा। कहने का तात्पर्य यह है कि जिसने भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति का रस चखा है उसे अन्य सांसारिक साधन कोई सुख प्रदान नहीं कर सकते हैं।
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