गणित की प्रकृति और क्षेत्र की विवेचना कीजिए (Nature and Area of Mathematics)
गणित की परिभाषा क्या है?, गणित का अर्थ क्या है?, गणित की प्रकृति क्या है? ganit ki paribhasha kya hai, ganit kise kahte hain,गणित की प्रकृति को स्पष्ट कीजिए,गणित की प्रकृति का विवेचन कीजिए,
प्रिय विद्यार्थियों आज के इस महत्वपूर्ण पोस्ट में हम गणित की प्रकृति और क्षेत्र के बारे में जानेंगे । यह प्रश्न आपकी परीक्षा में कई तरीके से पूछा जा सकता है जैसे गणित की प्रकृति को स्पष्ट कीजिए या गणित की प्रकृति का विवेचन कीजिए या ‘गणित सभी विज्ञानों की मां है तथा गणित सभी कलाओं का वाहक है ।’ कथन को स्पष्ट करते हुए गणित के क्षेत्र पर प्रकाश डालिए । इस पोस्ट में आपको गणित की प्रकृति और क्षेत्र के बारे में विस्तार से बताया जाएगा इसलिए पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़ें और यदि यह पोस्ट आपको पसंद आती है तो अपने सभी दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें
गणित का अर्थ
गणित वह विषय है जो गणनाओं पर आधारित है और जिसमें गणनाओं की प्रधानता होती है । Math (गणित) की अपनी भाषा होती है। भाषा का तात्पर्य गणितीय पद्य (mathematical terms), गणितीय प्रत्यय (mathematical concepts), सूत्र (formulae), सिद्धांत ( Theories of principles), तथा संकेतों (Signs) से है, जो कि विशेष प्रकार के होते हैं तथा गणित की भाषा को जन्म देते हैं।
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गणित की परिभाषा
प्राचीन काल से ही शिक्षा में गणित का सदैव उच्च स्थान रहा है। इसका अध्ययन करने का मुख्य कारण यह है कि छात्रों में इस विषय के अध्ययन द्वारा स्पष्टता पैदा होती है तथा छात्र अपने कार्य में सही तथा स्पष्ट रहता है।
गणित को विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न दृष्टिकोणों के आधार पर परिभाषित किया है। उदाहरणार्थ कोई गणित को गणनाओं का विज्ञान कहता है तो कोई संख्याओं एवं स्थान के विज्ञान के रूप परिभाषित करता है और कोई मापन ( माप-तौल), मात्रा तथा दिशा ( आकार-प्रकार) का विज्ञान के रूप में स्पष्ट करता है। वास्तव में, गणित का शाब्दिक अर्थ होता है- 'वह शास्त्र जिसमें गणनाओं की प्रधानता हो।' इस तरह गणित के संबंध में हम कह सकते हैं- 'गणित अंक, अक्षर, चिह्न आदि संक्षिप्त संकेतों का वह विज्ञान है जिसकी मदद से परिमाण, दिशा एवं स्थान का बोध होता है।' गणित विषय का आरंभ गिनती से ही हुआ है तथा संख्यापद्धति इसका एक विशेष क्षेत्र है। इसी आधार पर गणित की अन्य शाखाओं का विकास हुआ है।
वैज्ञानिकों के अनुसार गणित की परिभाषा
1. बर्टेण्ड रसेल के अनुसार, 'गणित एक ऐसा विषय है जिसमें हम यह भी नहीं जानते कि हम किसके बारे में बात कर रहे हैं? तथा न ही यह जान पाते हैं कि हम जो कह रहे हैं, वह सत्य है।'
2. लॉक के अनुसार, 'गणित वह मार्ग है जिसके द्वारा के मन अथवा मस्तिष्क में तर्क करने की आदत स्थापित होती है।
3.हागबेन के अनुसार- “गणित सभ्यता और संस्कृति का दर्पण है।”
4.गैलिलियो के अनुसार, “गणित वह भाषा है जिसमे परमेश्वर ने सम्पूर्ण जगत या ब्रह्माण्ड को लिख दिया है।”
5.रॉस के अनुसार, “गणित, विज्ञान की रानी है।”
6.गिब्स के अनुसार, “गणित एक भाषा है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर गणित के संबंध में कहा जा सकता है-
1. गणित स्थान एवं संख्याओं का विज्ञान है।
2. गणित गणनाओं का विज्ञान है।
3. गणित माप-तौल (मापन), मात्रा, परिमाण तथा दिशा का विज्ञान है।
4. गणित विज्ञान की क्रमबद्ध, संगठित एवं यथार्थ शाखा है।
5. इसमें मात्रात्मक तथ्यों तथा संबंधों का अध्ययन किया जाता है।
6. यह आगमनात्मक एवं प्रायोगिक विज्ञान है।
7. गणित के अध्ययन से तार्किक क्षमता का विकास होता है।
प्रश्न.गणित की प्रकृति और क्षेत्र की विवेचना कीजिए
अथवा
गणित की प्रकृति को स्पष्ट कीजिए ।
अथवा
गणित की प्रकृति का विवेचन कीजिए ।
अथवा
'गणित सभी विज्ञानों की मां है तथा गणित सभी कलाओं का वाहक है ।’ कथन को स्पष्ट करते हुए गणित के क्षेत्र पर प्रकाश डालिए ।
अथवा
गणित विषय की प्रकृति एवं क्षेत्र क्या है ?
अथवा
गणित की प्रकृति क्या है ?
अथवा
गणित से आप क्या समझते हैं इसकी प्रकृति और कार्यक्षेत्र की चर्चा कीजिए ।
अथवा
गणित की प्रकृति एवं संरचना में कौन सी विशेषता पाई जाती है ।
उत्तर- गणित की प्रकृति- प्रत्येक विषय की अपनी प्रकृति होती है। प्रकृति के आधार पर एक विषय की भिन्नता दूसरे विषय से की जाती है। गणित की प्रकृति को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा भली-भाँति समझा जा सकता है-
(1) गणित के ज्ञान का आधार हमारी ज्ञानेन्द्रियां हैं।
(2) गणित के नियमों, सिद्धान्तों, सूत्रों आदि में संदेह की संभावना नहीं रहती है।
(3) गणित की स्वयं की भाषा होती है। भाषा से अभिप्राय उसके प्रत्यय, सूत्र, संकेत एवं सिद्धान्त विशेष प्रकार के होते हैं जो कि उसकी भाषा को जन्म देते हैं।
(4) गणित के ज्ञान द्वारा प्रत्येक ज्ञान स्पष्ट होता है।
(5) गणित में ज्ञान ठीक, स्पष्ट, तार्किक, एक क्रम में होता है, जिसे एक बार समझ लेने पर सरलता से विस्मृत नहीं किया जा सकता ।
(6) गणित में संख्यायें, दिशा, स्थान, मापन आदि का ज्ञान प्राप्त किया जाता है।
(7) गणित के अध्ययन में तर्क क्रिया का बहुत उपयोग है।
(8) गणित द्वारा जीवन के अमूर्त प्रत्ययों की व्याख्या की जाती है।
( 9 ) गणित में सामान्यानुमान, निगमन, आगमन हेतु पर्याप्त सीमा भी होती है।
(10) गणित द्वारा बालकों में स्वस्थ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित होता है।
( 11 ) गणित के अध्ययन से बालकों में आत्मविश्वास एवं आत्मनिर्भरता का विकास होता है।
(12) गणित में संपूर्ण वातावरण में पायी जाने वाली वस्तुओं के परस्पर संबंध और संख्यात्मक निष्कर्ष निकाले जाते हैं।
( 13 ) गणित का ज्ञान समस्त जगत में समान रूप का होता है तथा उसका सत्यापन किसी भी स्थान एवं समय पर किया जा सकता है।
(14) गणित के ज्ञान का उपयोग विज्ञान की विभिन्न शाखाओं जैसे-भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान तथा अन्य विषयों के अध्ययन में किया जाता है।
(15) गणित के ज्ञान से बालकों में प्रशंसात्मक दृष्टिकोण और भावना का विकास होता है।
(16) गणित विज्ञान की विभिन्न शाखाओं के अध्ययन में सहायक ही नहीं, बल्कि उनकी प्रगति और संगठन की आधारशिला है।
इस प्रकार गणित की प्रकृति को उपर्युक्त बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है। वास्तव में गणित की संरचना जो कि उसकी प्रकृति की आधारशिला है अन्य विषयों की बजाय ज्यादा सुदृढ़ है।
अतः रोजर वैन्कन ने उपयुक्त ही कहा है कि गणित सभी विज्ञानों का सिंहद्वार एवं कुंजी है।
गणित का क्षेत्र
गणित का क्षेत्र- गणित का क्षेत्र बहुत व्यापक है, इसके क्षेत्र का सीमांकन करना असंभव नहीं बल्कि कठिन अवश्य है। गणित को 'विज्ञानों की रानी' कहा जाता है। इस अनुसार गणित के दो पक्ष हैं- आधारिक गणित और प्रयुक्त गणित। जीवन के हर एक क्षेत्र में गणित का उपयोग होता है। बिना गणित के हम विज्ञान में किसी उचित निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सकते हैं। अतः इस रीढ़ की हड्डी को अलग करना सरल नहीं है। यदि रीढ़ की हड्डी को निकाल दिया जाये तो हमारी भौतिक सभ्यता का ढाँचा भी उसी प्रकार का होगा जैसा कि एक नर- कंकाल का होता है। किसी लेखक ने सत्य ही कहा है- 'गणित सभी विज्ञानों की माँ है तथा गणित समस्त कलाओं का वाहक है। आज मानव ने प्रत्येक क्षेत्र में उन्नति की है जिसमें गणित का योगदान प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
गणित के क्षेत्र के अंतर्गत सम्मिलित किये जाने वाले दो पक्ष निम्नलिखित हैं-
(अ) आधारिक गणित- गणित के सैद्धान्तिक पक्ष को आधारिक गणित कहा जाता है। इसकी प्रमुख धारायें हैं-
समुच्चय सिद्धान्त
(i) समुच्चय सिद्धान्त का उद्गम व परिभाषा
(ii) समुच्चय की आधारभूत अवधारणायें, कटोरियन समुच्चय सिद्धान्त के आवश्यक गुण ।
(iii) स्वयंसिद्ध समुच्चय सिद्धान्त - स्वयंसिद्ध समुच्चय सिद्धान्त के अभिगृहीत, स्वयंसिद्ध समुच्चय सिद्धान्त की वर्तमान संस्थिति।
बीजगणित- इसके अन्तर्गत अंकगणित, प्रारम्भिक व बहुचर विश्लेषण, बीजगणित, रैखिक बहुचर बीजगणित व बीजगणितीय संरचनायें शामिल हैं।
ज्यामिती- ज्यामिती के अन्तर्गत यूक्लिडियन निरयूक्लिडियन, बहिर्वेशन, वैश्लेषिक व त्रिकोणमितीय, संचय विन्यास, अवकलन, बीजगणितीय ज्यामिति सम्मिलित है।
विश्लेषण- गणित की इस शाखा के अन्तर्गत वास्तविक सम्मिश्र, अवकल समीकरण,फलन विश्लेषण, फोरियर, प्रसम्भाव्यता सिद्धान्त, सदिश व अदिश को रखा गया है।
संचय विन्यास विज्ञान व संख्या प्रणाली- इस शाखा के अन्तर्गत संचय विन्यासन व संचयात्मक ज्यामिति व संख्या सिद्धान्त को सम्मिलित किया गया है।
संस्थिति विज्ञान- इसमें सामान्य संस्थितिकी संस्थितिकीय समूह और अवकलनीय संस्थितिकी तथा बीज-गणितीय संस्थितिकी सम्मिलित है।
(ब) प्रयुक्त गणित- इसकी निम्न उपशाखायें हैं-
परिकलन विज्ञान- इसकी उपशाखाओं के अन्तर्गत संख्यात्मक संकेतन, ज्यामितीय सामग्रियाँ. बीजगणित में परिकलनीय पक्ष, गणितीय प्रतिमान व सारणियों व लेखाचित्र का परिकलित्रीय उपयोग, सादृश्यता, अभिकलन और अंकीय अभिकलन सम्मिलित किये जाते हैं। सांख्यिकी - इसके अन्तर्गत आधारिक सिद्धान्त, आंकलन, परिकल्पना, परीक्षण संरचना, आंकिक विश्लेषण, सूचना सिद्धान्त आदि सम्मिलित किये जाते हैं।
भौतिक सिद्धान्तों के गणितीय पक्ष-
(i) कणों व पद्धतियों की
(iii) ठोस की यांत्रिकी ।
(v) विद्युत चुम्बकीय सिद्धान्त ।
(vii) क्वाण्टम यांत्रिकी।
(ii) तरलों की यांत्रिकी
(iv) सांख्यिकीय यांत्रिकी ।
(vi) सापेक्षिकता सिद्धान्त ।